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आचार्य रवीन्द्र जी का संक्षिप्त जीवनवृत्त

R.E.C (अब National Institute of Technology अथवा NIT) वारंगल से B. Tech और M. Tech पूरा करने के बाद स्वामि दयानन्द जी द्वारा लिखित सत्यार्थप्रकाश से प्रेरणा प्राप्त करके आचार्य रवीन्द्र जी ने वैदिक साहित्य के अध्ययन में अपना पूरा समय लगाने का संकल्प लिया था। तत्पश्चात वे गुजरात में स्थित दर्शन योग महाविद्यालय में संस्कृत व्याकरण व वैदिक शास्त्रों के अध्ययन हेतु प्रवेश लिया। वहां वे ४ वर्ष रह कर संस्कृत व्याकरण शास्त्र का महाभाष्य तक गहन अध्ययन किया। व्याकरण के साथ दार्शनिक व वैदिक सिद्धान्तों का ज्ञान भी पाया। योगसाधना में भी मार्गदर्शन प्राप्त किया व साधना का अभ्यास किया। तत्पश्चात्  उन्होंने निरुक्त शास्त्र का भी अध्ययन किया, मैसूर में आचार्य वासुदेव परंजपे जी से कल्प सूत्र, मीमांसा के कुछ अंश का अध्ययन किया। गोकर्ण में श्री गणेश शर्मा जोगलेकर सहित अनेक विद्वानों से ऋग्वेद के कुछ अंश का विभिन्न परंपराओं के अनुसार सस्वर पाठ का अभ्यास किया।
तत्पश्चात् वे अनेक वर्षों तक ज्योतिष में सूर्यसिद्धान्त, सिद्धान्त शिरोमणि, ऋग्वेद का सायण भाष्य, स्वामी दयानन्द का उपलब्ध संपूर्ण वेदभाष्य, दर्शन शास्त्र, मनुस्मृति, कौटिल्य अर्थ शास्त्र आदि का स्वयम् अध्ययन किया।
साथ में वे राजस्थान व हरयाणा में गुरुकुल स्थापित किया और संचालित किया तथा अनेक विद्यार्थियों को व्याकरण पढाया। गुरुकुल संचालन करते हुए उन्होंने अनुभव किया कि वर्तमान समाज में व्याप्त अव्यवस्था, अशान्ति, अज्ञान आदि को दूर करने के लिए इतना पर्याप्त नहीं है। शास्त्रों में वर्णित आदर्शों को समाज में स्थापित करने हेतु तथा समाज की वर्तमान दिशा को बदल कर आदर्श की ओर ले जाने की क्षमता वाले उन श्रेष्ठ मनुष्यों का निर्माण करने हेतु और भी बहुत कुछ जानना व समझना आवश्यक है। वे वर्तमान समाज के आर्थिक, राजनीतिक, कृषि, पशुपालन आदि विभिन्न पहलुओं का बारिकी से अध्ययन किया। शून्य लागत प्राकृतिक कृषि, गाय की नस्ल सुधार, पंचगव्य आदि विषयों में गहरा ज्ञान व समझ विकसित की। प्रशिक्षण शिविरों द्वारा अनेक किसानों को प्रशिक्षण भी दिया। भारत सरकार के कृषि मन्त्रालय व कृषि शोध संस्थानों द्वारा संचालित प्राकृतिक कृषि से संबन्धित योजनाओं में विशेषज्ञ के रूप में भाग लिया। इस प्रकार कृषि, पशुपालन आदि को आदर्श रूप से संचालित करने हेतु आवश्यक मौलिक सिद्धान्तों की समझ अपने अन्दर विकसित की।
आचार्य रवीन्द्र देश के उन गिने चुने विद्वानों में से एक हैं जिनका न केवल एक व दो शास्त्रों, अपितु संपूर्ण वैदिक साहित्य में गहन ज्ञान है। वे आज भी पात्र विद्यार्थियों के लिए शास्त्र पढाते है और जिज्ञासु एवं सामाजिक सक्रिय व्यक्तियों के लिए वेद शास्त्रों के विषय में कार्यशालाओं का आयोजन भी करते हैं।
वर्तमान में वे उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में ‘वैदिक ग्राम परियोजना’ को सफल बनाने में लगे हुए हैं। यह परियोजना एक मोडॅल ग्राम को स्थापित करने के लिए है जो पूर्ण रूप से वैदिक सिद्धांतों पर आधारित हो| अर्थात् शिक्षा, अर्थ व्यवस्था, सामाजिक ढांचा एवं आंतरिक प्रशासन आदि वैदिक सिद्धांतों के अनुकूल होंगे।

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