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वैदिक जीवन शैली

वैदिक जीवन शैली एक निसर्ग केन्द्रित जीवन शैली है जहां लोग सामाजिक जीवन जीते हैं। वे अपने वैयक्तिक व सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हैं। अपने दायित्वों का निर्वहन करते समय वे इस बात का बहुत ध्यान रखते हैं कि अपने क्रियाकलापों के कारण आसपास के नैसर्गिक तंत्र व समाज में सामंजस्य को किसी प्रकार से भंग न करें। नियमित यज्ञ का अनुष्ठान करते हुए नैसर्गिक तंत्रों व समाज को अधिक से अधिक गुणयुक्त बनाने का प्रयास करते हैं। ‘सामाजिक उन्नति के साथ व्यक्ति की उन्नति’ यह वैदिक समाज में उन्नति का सिद्धांत है। वैयक्तिक उन्नति के तीन क्षेत्र हैं। वे हैं धर्म, अर्थ और काम। उन्नति के समय तीनों क्षेत्रों में संतुलन बनाकर रखना अनिवार्य है। तभी वास्तविक विकास संभव है। अन्यथा किसी एक क्षेत्र में उन्नति एक सीमा के बाद तीनों क्षेत्रों के पतन का कारण बनता है।
परमात्मा की उपासना, पंच महायज्ञों का अनुष्ठान, सामाजिक उन्नति के साथ व्यक्ति की उन्नति, तथा समाज एवं नैसर्गिक व्यवस्थाओं के साथ सामंजस्य वैदिक जीवन शैली के मौलिक सिद्धांत हैं।

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